Facebook Facebook

 

माहेश्वरी जाति की उत्पत्ति :

सूर्यवंशी राजाओं में चौहान जाति के खडगल सेन राजा खण्डेला नगर में राज्य करते थे | वह बड़े दयालु और न्याय प्रिय थे | उनके राज्य में प्रजा बड़े सुख से रहती थी | मृग और मृगराज एक घाट पानी पीते थे | राजा को हमेशा एक यही चिन्ता रहती थी कि उनके एक भी पुत्र नहीं था | एक समय राजा ने बड़े आदर भाव से जगत गुरु ब्राह्मणों को अपने यहाँ बुलाकर उनका बड़ा सत्कार किया | राजा की सेवा भक्ति से ब्राह्मण लोग बड़े संतुष्ट हुए | ब्राह्मणों ने राजा को वर माँगने को कहा कि यदि आप शिव की उपासना करोगे तो आपको एक होनहार, पराक्रमी और चक्रवर्ती पुत्र प्राप्त होगा परन्तु उसे 16 वर्ष तक उत्तर दिशा में मत जाने देना जो उत्तर दिशा में सूर्य कुण्ड है, उसमें स्नान मत करने देना | यह वह ब्राह्मणों से द्वेष नहीं करेगा तो चक्रवर्ती राज करेगा, अन्यथा इसी देह से पुर्नजन्म लेगा | इस प्रकार ब्राह्मणों का आशीर्वाद प्राप्त कर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ | राजा ने उनको वस्त्र आभूषण, गाय आदि देकर प्रसन्नचित्त विदा किया |

राजा के चौबीस रानियाँ थी | कुछ समय बाद उनमें से एक रानी चम्पावती के पुत्र जन्म हुआ | राजा ने बड़ा आनंद मनाया और नवजात शिशु का नाम सुजान कुँवर रखा | सात वर्ष का होते ही राजकुमार घोड़े पर चढ़ना, शस्त्र चलाना सीख गया | जब वह बारह वर्ष का हुआ तो शत्रु लोग इससे डरने लगे | वह चौदह विद्या पढ़कर होशियार हो गया | राजा उसके काम को देखकर संतुष्ट हुए | राजा ने इस बात का ध्यान रखा कि सुजान कुँवर उत्तर दिशा में न जाने पाये |

इसी समय में एक बौद्ध (जैन) साधू ने आकर राजपुत्र को जैन धर्म का उपदेश देकर शिवमत के विरुद्ध कर दिया | ब्राहमणों के नाना प्रकार के दोष वर्णन किये और 14 वर्ष की उम्र में राजकुमार शिवमत के विरुद्ध होकर जैन धर्म मानने लगा | वह देव पूजा नहीं होने देता था | उसने तीनों दिशाओं पूर्व, पश्चिम, दक्षिण में घूम कर जैन मत का प्रचार किया |ब्राह्मणों को बड़ा दुःख दिया, उनके यज्ञोपवीत तोड़े गये | यज्ञ करना बंद हो गया | राजा के भय से राजकुमार उत्तर दिशा में नहीं जाता था | परन्तु प्रारब्ध रेखा कौन मिटावे | राजकुमार अपने 72 उमरावों को साथ लेकर उत्तर दिशा में सूर्य कुण्ड पर चला ही गया जहाँ पर छ: रिषेश्वर, पारासुर गौतम आदि को यज्ञ करता देख बड़ा क्रोधित हुआ | राजकुमार की आज्ञा से उमरावों ने इन ब्राह्मणों ने शाप दिया कि तुम सब इसी समय जड़ बुद्धि पाषाणवत हो गये | राजकुमार के शाप ग्रसित होने की खबर चारों तरफ फ़ैल गई |

राजा और नगर निवासी यह समाचार सुनकर बड़े दुखी हुए | महाराज खडगल सेन ने इसी दुःख में प्राण तक त्याग दिये | इनके साथ इनकी सोलह रानियाँ सती हो गई | शेष आठ रानियाँ रावले में रही | अब राज्य की रक्षा करने वाला कोई नहीं रहा तो आस-पास के राजाओं ने हमले करके राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया और अपना जीता हुआ भाग अपने-अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया | इधर राजकुमार की रानी बहत्तर उमरावों की पत्नियों सहित रुदन करती हुई उन्हीं ब्राह्मणों की शरण में गई जिन्होंने इनके पतियों को शाप दिया था | ये उन ब्राह्मणों के चरणों में गिर पड़ी, रोई और नम्रता से प्रार्थना करने लगी | यह हाल देखकर ब्राह्मणों को उनपर दया आई | उन्होंने धर्म उपदेश दिया और कहा कि हम शाप दे सकते है लेकिन शाप-मुक्त करना हमारा काम नहीं है | ब्राह्मणों ने उनकों सलाह दी कि पास ही गुफा में जाकर शिव की आराधना करो | तुम्हारी आराधना से प्रसन्न होकर शंकर और पार्वती ही इन लोगों को शाप से छुटकारा करा सकेंगे | सब स्त्रियाँ गुफा में गई और वहीँ भक्तिपूर्वक शिवजी की साधना करने लगी |

कुछ समय बाद भगवान शिव और पार्वती घूमते-घूमते उधर ही आ निकले जहाँ राजकुमार अपने बहत्तर उमरावों और घोड़े सहित पत्थर के होकर पड़े थे | भगवान शिवजी से पार्वती जी ने इन पत्थर की मूर्तियों के होने के बारे में पूछा | तब शिवजी ने इन मूर्तियों का पूर्ण इतिहास पार्वतीजी को समझाया |

इसी समय राजकुमार की रानी व बहत्तर उमरावों की स्त्रियाँ आकर पार्वती जी के चरणों में गिर पड़ी और अपनी व्यथा प्रकट करने लगी| पार्वतीजी ने उनके कष्ट से व्यथित होकर शिवजी से इनको शाप मुक्त करने की प्रार्थना की | इस पर महादेव जी ने उनकी मोह निद्रा छुड़ा कर उनको चेतन किया | सब चेतन हो भगवान शिवजी के प्रणाम करने लगे |

राजकुमार जैसे ही अपने होश में आया श्री पार्वतीजी के स्वरूप से लुभायमान हो गया | यह देख कर पार्वतीजी ने उसे शाप दिया कि हे कुकर्मी तू भीख मांग कर खायेगा और तेरे वंश वाले हमेशा भीख मांगते रहेंगे | वे ही आगे चलकर ‘जागा’ के नाम से विदित हुए |

बहत्तर उमराव बोले-हे भगवान ! अब हमारे घर बार तो नहीं रहे, हम क्या करें | तब शिवजी ने कहा ‘तुमने पूर्वकाल में क्षत्रिय होकर स्वधर्म त्याग दिया, पर इसी कारण तुम क्षत्रिय न होकर अब वैश्य पद के अधिकारी होंगे | जाकर सूर्यकुण्ड में स्नान करों | ‘सूर्य कुण्ड में स्नान करते ही तलवार से लेखनी, भालों की डांडी और ढालों से तराजू बन गई और वे वैश्य बन गये | भगवान महेश के द्वारा प्रतिबोध देने के कारण ये बहत्तर उमराव ‘माहेश्वरी वैश्य’ कहलाये |

जब यह खबर ब्राह्मणों को मिली कि महादेव जी ने बहत्तर उमरावों को शाप मुक्त किया है तो उन्होंने आकर शिवजी से प्रार्थना की कि हे भगवान आपने इनको शाप मुक्त तो कर दिया लेकिन हमारा यज्ञ कैसे पूरा होगा ? तब शंकर ने उन उमरावों को उपदेश दिया कि आज से ये ऋषि तुम्हारे गुरु हुए | इन्हें तुम अपना गुरु माना करना | शिवजी ने ब्राह्मणों से कहा कि इनके पास देने को इस समय कुछ नहीं है परन्तु इनके घर में मंगल उत्सव होगा तब यथाशक्ति द्रव्य दिये जायेंगे, तुम इनकों स्वधर्म में चलने की शिक्षा दो | ऐसे वर देकर शंकर पार्वती सहित वहां से अन्तरधान हो गये | ब्राह्मणों ने इनको वैश्य धर्म धारण कराया | तब बहत्तर उमराव इन छ: रिषेश्वरों के चरणों में गिर पड़े | बहत्तर उमरावों में से एक – एक ऋषि के बारह-बारह शिष्य हुए |वही अब यजमान कहे जाते है | कुछ काल के पीछे खण्डेला छोड़कर यह सब डीडवाना आ बसे | वे बहत्तर उमराव खांप की दीद माहेश्वरी कहलाये | यही दिन जेठ सुदी नवमी का दिन था, जब माहेश्वरी वैश्य कुल की उत्पत्ति हुई | दिन-प्रतिदिन यह वंश बढ़ने लगा |

 

माहेश्वरी समाज का बोध चिन्ह

 

सेवा  त्याग  सदाचारमाहेश्वरी समाज का आधार !

राष्ट्रीय स्तर पर माहेश्वरी समाज का बोध चिन्ह अखिल भारतवर्षीय माहेश्वरी महासभा ने चितौड़गढ़ की बैठक में एक सुन्दर बोधचिन्ह स्वीकृत किया है | त्याग और पराक्रम की भूमि भगवान एकलिंगजी का सान्निध्य एवं संस्कृति संरक्षक चितौड की साक्षी से यह बोधचिन्ह अंगीकृत किया गया, इसलिए इसमें एक दिव्य शक्ति अन्तभुर्त हुई है | बोधचिन्ह का दर्शन अत्यंत मंगल है |देखते ही अनेक प्रेरक भाव मन में प्रस्फुटित होते है | इसमें श्वेत कमलपुष्प के कोमल आसन पर भगवान महेश सांवले लिंग में विराजमान है | भगवान शिव हमारे समाज के निर्माणकर्ता है | वे हमारे आराध्य है | भगवान शिव के का त्रिपुंग, त्रिशूल, एवं डमरू शोभा दे रहे है | कमल पुष्प नौं पंखुड़ियों वाला है | कमल का पुष्प देवी-देवताओं का अत्यंत प्रिय पुष्प है | देवी सरस्वती श्वतेपद्मासना है | तो देवी महालक्ष्मी लाल कमल पर विराजमान है | लक्ष्मी के तो दोनों हाथों में कमल होते है | भगवान विष्णु के एक हाथ में सुदर्शन तो दुसरे हाथ में कमल पुष्प होता रहता है और ब्रह्माजी का दर्शन हमें हमेशा नाभि कमल पर ही होता है | कमल पुष्प की और एक विशेषता है कि यह कीचड़ में खिलता है | और जल में रहते हुए में उससे लिप्त नहीं होता | कहते है कमल की पंखुड़ी तथा पत्ते पर जल का बिंदु नही ठहरता, पानी में रहते हुए भी पानी से अलिप्त, बिलकुल अनासक्त | यही भाव समाज में काम करते समय होना चाहिए | हम काम करेंगे, करते रहेंगे लेकिन फल की कोई अपेक्षा न रखते हुए हमें न पद की चाह हो न मान-सम्मान की | कमल का पुष्प मंगल है और अनासक्ति का धोतक है | कमल पुष्प के नौ पंखुड़ियों के बीच की पंखुड़ी पर अखिल ब्राहमण का प्रतीक, सभी मंगल सत्रों का मूलाधार  की स्थापना की गयी है | परमात्मा का असंख्य रूप है उन सभी रूपों का समावेश ओंकार में हो जाता है |

ॐ सगुण-निर्गुण का समन्वय और एकाक्षर ब्रह्मा भी है | भागवत गीता में कहा है ‘ओमित्येकाक्षरं ब्रह्मा’ माहेश्वरी समाज आस्तिक और प्रभुविश्वासी रहा है | उस ईश्वर श्रद्धा का प्रतीक है  | शब्दवह्हा के पार्श्वभाग में  ब्रहामंड के नायक भगवान शिव का त्रिपुड, त्रिशूल एवं डमरू के साथ दर्शन होता है | अत्यंत वैभव सम्पन्न होने पर भी भगवान शिव की सादगी सीमागीत है | वे वैराग्यमूर्ति बनकर भस्म में रमाए रहते है | भस्म का त्रिपुण्ड शिवजी की त्याग वृत्ति का प्रतीक है | त्रिशूल विविध तापों को नष्ट करने वाला एवं दुष्ट प्रवृत्ति का दमन करने वाला है और डमरू बताता है कि उठो जागो और परिवर्तन का डंका बजाओं | समाज मानस को जागृत करके समस्याओं को दूर करों | कमलासन के नीचे त्रिदलीय बिल्वपत्र है जो विश्वधर्म को आलोकित करने वाले तीनो गुणों से मंडित है | ये तीन गुण है, सेवा-त्याग-सदाचार | मानव जीवन को सार्थक, सफल और सुन्दर बनाने वाले ये तीन गुण है | संगठन को सुरक्षित करने वाले ये तीन गुण है |

सेवा - सेवा – समाज का बहुत बड़ा ऋण है जो हर व्यक्ति पर होता है | समाज हमारे लिए जन्म से मृत्यु तक बहुत कुछ करता है | इसलिए समाज में परमात्मा की भावना जैसे उसकी सेवा करने का प्रयास करना चाहिए | मेरे पास कुछ हो अथवा न हो समाज से प्रेम करना समाज की सेवा करना मेरा कर्तव्य है | समाज में अनेक समस्याएं है इन सबको हम नहीं सुलझा सकते है, किन्तु निराधार को आधार, वैधकीय सेवा, व्यावसायिक सहायता, शिक्षा अथवा संस्कार इनमें अपनी क्षमतानुसार योगदान देकर हम समाज की सेवा कर सकते है अपने पास थोडा भी अतिरिक्त समय, धन अथवा किसी प्रकार का बल हो तो वह समाज स्वरूप परमात्मा की सेवा में लग जाये, यही सेवा का सर्वोत्तम सदुपयोग है | सेवा से लोगों के मन में अपनेपन के भाव का निर्माण होता है और संगठन सुदृढ़ होता है | उसमें शक्ति आती है |

त्याग - त्याग की महिमा अपरंपार है | त्याग की असाधारण महिमा से हमारे शास्त्र भरे हुए है | समाज की उन्नति त्याग के बिना संभव नहीं | हमारे पूर्वज स्वयं सादगीपूर्ण जीवन बिताते थे और परिश्रम से प्राप्त की हुई पूंजी को समाजोपयोगी कार्यों में लगाकर स्वयं को धन्य मानते थे | इन्हीं विचारों से विद्यालय, अस्पताल, देवमंदिर, धर्मशालाएं, महाविधालय, छात्रावास आदि का निर्माण हुआ है |

सदाचार - सदाचार से समाज का उत्थान होता और अनाचार से पतन होता है | सदाचार से ही लोग आकर्षित होते है | सदाचार का ही आदर सब करते है, दुराचार का सर्वत्र अनादर होता है | व्यक्ति – व्यक्ति को सदाचारी बनान और सदाचारी व्यक्तियों को संगठित करना यही सामाजिक उद्धार का मूल मंत्र है | सेवा, त्याग, सदाचार का डंका बजाने वाला हमारा यह बोधचिन्ह सचमुच का बड़ा अर्थपूर्ण है | हमारे इस अलौकिक बोधचिन्ह का प्रचार-प्रसार हमें जितना हो अधिकाधिक करना चाहिए | यह गौरवशाली चिन्ह है | हर माहेश्वरी व्यक्ति तथा संस्था की यह पहचान है | जहाँ – जहाँ हो सके वहां इसे छपवाइए | घर में दुकान में सर्वत्र लगवाइए | हर उत्सव में हर कार्यक्रम में इसका उपयोग कीजिए |

 

Leave your message with us we will responsive as soon as possible

Dear member we are very honorable personility, If you want to communication with us,Then leave your message here

Office Address: Maheshwari Panchayat Bhawan, Pali Bazar, Beawar-305901
Whats Up: - +91-9314025185
Mobile No.:- +91- 9314025185
Email: - [email protected]