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आरती श्री गणेश जी की
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता माह देवा॥
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥ जय गणेश........
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
मस्तक पर सिन्दूर सोह, मुसे की सवारी॥ जय गणेश........
अन्धन को आंख देत, कोढिन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥ जय गणेश........
हार चढ़े, फल चढ़े और चढ़े मेवा।
सूरदास शरण आयो सुफल कीजै सेवा॥ जय गणेश........
दीनन की लाज राखो शम्भु-सुत वारी।
कामना को पूरी करो जग बलिहारी॥ जय गणेश........
आरती श्री लक्ष्मी जी की
ओम् जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु धाता।। ओम्।।
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।। ओम्।।
दुर्गा रूप निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता।। ओम्।।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभ दाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता।। ओम्।।
जिस घर में तुम रहती, तहँ सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता।। ओम्।।
तुम बिन यज्ञ न होते, बरत न हो पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता।। ओम्।।
शुभ-गुण-मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रतन चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता।। ओम्।।
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता।। ओम्।।
ओम् जय जगदीश हरे
ओम् जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे,
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे।। ओम्।।
जो ध्यावे फल पावे, दुरूख बिन से मन का।। प्रभु।।
सुख-सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का।। ओम्।।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी।। प्रभु।।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी।। ओम्।।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।। प्रभु।।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी।। ओम्।।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन कर्ता।। प्रभु।।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता।। ओम्।।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।। प्रभु।।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति।। ओम्।।
दीन बन्धु दुरूख हरता, तुम रक्षक मेरे।। प्रभु।।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे।। ओम्।।
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।। प्रभु।।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा।। ओम्।।
तन, मन, धन सब कुछ है तेरा,।। प्रभु।।
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा।। ओम्।।
आरती सत्यनारायण जी की
जय लक्ष्मी रमणा, श्री जय लक्ष्मी रमणा।
सत्यनारायण स्वामी, जन-पातन-हरणा॥
रत्न जड़ित सिंहासन, अद्ड्ढभुत छवि राजे।
नारद करत निरन्त, घंटा ध्वनि बाजे॥ जय.......
प्रगट भये कलि कारण, द्विज को दरस दिया।
बूढ़ो ब्रह्मणा बनकर, कंचन-महल किया॥ जय.......
दुर्बल भील कठारो, जिनपर कृपा करी।
चन्द्रचूड़ एक राज, जिनकी विपद हरी॥ जय.......
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्घा तज दीन्हीं।
सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर स्तुति कीन्हीं॥ जय.......
भाव-भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धरयो।
श्रद्घा धारण कीन्ही, तिनको काज सरयो॥ जय.......
ग्वाल-बाल संग राजा, वन में भक्ति करी॥
मनवांछित फल दीन्हों, दीनदयालु हरी॥ जय.......
चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा।
धूप दीप तूलसी से राजी सत्यदेवा॥ जय.......
श्री सत्यनारायण जी की आरती जो कोई नर गावे।
तन-मन सुख-सम्पत्ति, मनवांछित फल पावे॥ जय.......
आरती श्री हनुमान जी की
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्टदलन रघुनाथ कला की ॥ टेक॥
जाके बल से गिरिवर काँपै। रोग-दोष जाके निकट न झाँपै ।।1।।
अंजनि पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई ।।2।।
दे बीरा रघुनाथ पठाये। लंका जारि सीय सुधि लाये ।।3।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई ।।4।।
लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काँज सँवारे ।।5।।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि संजीवन प्रान उबारे ।।6।।
पैठी पताल तोरि जम-कारे। अहिरावन की भुजा उखारे ।।7।।
बायें भुजा असुर दल मारे। दहिने भुजा संतजन तारे ।।8।।
सुर नर मुनि आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे ।।9।।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरति करत अंजना माई ।।10।।
जो हनुमानजी की आरती गावै। बसि बैकुंठ परमपद पावै ।।11।।
लंका विध्वंस किये रघुराई। तुलसीदास स्वामी आरती गाई ।।12।।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्टदलन रघुनाथ कला की ।।13।।
आरती श्री अम्बा जी की
जय अम्बे गौरी मैया, जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।। जय।।
मांग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्र वदन नीको।। जय।।
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै।। जय।।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खपर धारी।
सुर नर मुनि जन सेवत, तिनके दुखहारी।। जय।।
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति।। जय।।
शुम्भ-निशुम्भ विदारे, महिषासुर धाति।
धूम्रविलोचन नैना, निशिदिन, मदमाती।। जय।।
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणितबीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।। जय।।
ब्रह्माणी रुद्राणी, तुम कमलारानी।
आगम-निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।। जय।।
चैसठ योगिनि गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरु।। जय।।
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुख हरता, सुख सम्पत्ति करता।। जय।।
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर-नारी।। जय।।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।। जय।।
श्री अम्बे जी की आरती, जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै।। जय।।
आरती श्री शनि देव जी की
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभू छाया महतारी।। 1।।
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी।। 2 ।।
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी।। 3।।
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी।। 4।।
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी।। 5।।
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